लेखक: NowOrNever News Team | दिनांक: 7 जून 2025
भारत के लोकतंत्र में हाल के दिनों में जिस तीव्रता से राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप बढ़े हैं, उसका ताजा उदाहरण कांग्रेस नेता राहुल गांधी और भारत के चुनाव आयोग (ECI) के बीच की तनातनी है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के नतीजों पर सवाल उठाते हुए राहुल गांधी ने सीधे तौर पर "मैच फिक्सिंग" का आरोप लगाया, जिस पर ECI ने बेहद कड़ा रुख अपनाया है।
राहुल गांधी का आरोप क्या था?
राहुल गांधी ने चुनाव प्रक्रिया को अविश्वसनीय ठहराते हुए कहा कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 को सुनियोजित तरीके से भाजपा के पक्ष में "फिक्स" किया गया। उन्होंने एक पाँच बिंदुओं वाली योजना का हवाला देते हुए दावा किया कि:
- चुनाव आयोग की नियुक्ति प्रक्रिया में पक्षपात किया गया,
- मतदाता सूची में फर्जी नाम जोड़े गए,
- मतदान प्रतिशत में असामान्य और कृत्रिम वृद्धि हुई,
- भाजपा ने चुनिंदा क्षेत्रों में फर्जी मतदान करवाया,
- और अंततः, पूरे घटनाक्रम के साक्ष्यों को छिपाया गया।
ECI ने 4 बिंदुओं में किया जवाबी वार
भारत निर्वाचन आयोग ने इन आरोपों को "पूरी तरह से बेतुका" और "कानून के शासन के खिलाफ" करार दिया। आयोग ने कहा कि इस तरह के आरोप उन लाखों चुनाव कर्मचारियों के समर्पण पर सीधा सवाल हैं जो निष्पक्ष चुनाव कराने में जुटे रहते हैं। आयोग ने चार प्रमुख बातें रखीं:
- आरोप बेतुके और निराधार हैं, जिनमें कोई तथ्यात्मक आधार नहीं है।
- कांग्रेस को पहले ही विस्तृत स्पष्टीकरण 24 दिसंबर 2024 को भेजा जा चुका है, जिसे सार्वजनिक भी किया गया।
- चुनाव प्रक्रिया के दौरान किसी गंभीर शिकायत की पुष्टि नहीं हुई — न तो मतदान में, न ही वोटर लिस्ट को लेकर।
- चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पारदर्शी और संविधानसम्मत है, जिसे बार-बार झुठलाना जनमत के प्रति असम्मान है।
सियासी दलों की प्रतिक्रियाएँ: लोकतंत्र या रणनीति?
भाजपा ने राहुल गांधी पर तीखा पलटवार करते हुए उन्हें "सोरोस की रणनीति" अपनाने वाला नेता बताया, जो भारत की लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने का प्रयास कर रहा है। भाजपा के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने कहा कि राहुल का यह बयान हार छुपाने की "पहचान योग्य स्क्रिप्ट" है।
वहीं कांग्रेस का कहना है कि उनके पास मजबूत आधार हैं और वे यदि ज़रूरत पड़ी तो न्यायालय का रुख भी करेंगे।
बड़ा सवाल: क्या यह आरोप व्यवस्था पर सवाल हैं या राजनीति का नया हथियार?
राजनीति में हार-जीत सामान्य बात है, लेकिन जब चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था पर सीधे-सपाट आरोप लगाए जाते हैं, तो वह केवल एक राजनीतिक मुद्दा नहीं रह जाता — यह लोकतंत्र की बुनियाद पर असर डालता है।
यदि राहुल गांधी के पास ठोस प्रमाण हैं, तो उन्हें कानूनी कार्रवाई के ज़रिए जनता के सामने रखना चाहिए। और यदि ऐसा नहीं है, तो यह आरोप सिर्फ़ राजनीतिक पैंतरेबाज़ी माने जाएंगे।
निष्कर्ष: लोकतंत्र की परीक्षा या विपक्ष की रणनीति?
भारत में चुनाव प्रक्रिया एक सुव्यवस्थित, तकनीकी और संवैधानिक तंत्र से संचालित होती है। इसमें खामियाँ हो सकती हैं, पर इतनी गहरी साजिशें क्या संभव हैं — यह एक अलग बहस का विषय है।
राहुल गांधी का यह आरोप जनमानस को विचलित करता है या सच को उजागर करता है — इसका उत्तर इतिहास देगा। लेकिन एक बात तय है: इस विवाद ने 2025 के बाकी चुनावों को एक नई दिशा दे दी है।
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