🌏 India vs China: रेयर अर्थ पर अमेरिका-चीन की डील, भारत की मुसीबत बढ़ी
📍 ताज़ा घटनाक्रम: अमेरिका और चीन के बीच समझौता
🗓️ दिनांक: 12 जून 2025
🔍 क्या है मामला?
अमेरिका और चीन के बीच हाल ही में हुए रेयर अर्थ मेटल्स पर एक व्यापार समझौते ने वैश्विक सप्लाई चेन को झटका दिया है। अमेरिका अब अपनी इलेक्ट्रिक और हाई-टेक इंडस्ट्री के लिए आवश्यक खनिजों के लिए चीन पर ही निर्भर रहेगा। इससे भारत की ऑटो और इलेक्ट्रिक इंडस्ट्री को बड़ा झटका लग सकता है।
🚗 भारत की ऑटो इंडस्ट्री क्यों फंसी मंझधार में?
भारत की EV (Electric Vehicle) और लिथियम बैटरी आधारित ऑटो इंडस्ट्री ने हाल के वर्षों में तेज़ी पकड़ी है। लेकिन इनमें इस्तेमाल होने वाले रेयर अर्थ एलिमेंट्स – जैसे कि नियोडिमियम, लैंथेनम और डिस्प्रोसियम – अधिकतर चीन से ही आते हैं। अमेरिका-चीन डील के बाद चीन इनकी सप्लाई पर कठोर नियंत्रण कर सकता है, जिससे भारत को संकट झेलना पड़ सकता है।
🌐 क्या है अमेरिका-चीन की डील?
डोनाल्ड ट्रंप सरकार के तहत अमेरिका ने चीन के साथ एक नया समझौता किया है, जिसके तहत चीन अमेरिका को प्राथमिकता के आधार पर रेयर अर्थ सप्लाई करेगा। इसके बदले अमेरिका चीन को उच्च तकनीक और मशीन टूल्स देने पर सहमत हो गया है। यह भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए रणनीतिक झटका है।
📉 भारत के विकल्प क्या हैं?
भारत के पास सीमित मात्रा में रेयर अर्थ संसाधन हैं, लेकिन उनका खनन और परिष्करण अभी शुरुआती चरण में है। भारत को चाहिए कि वह जल्द से जल्द ऑस्ट्रेलिया, वियतनाम और ब्राजील जैसे देशों से रणनीतिक साझेदारी करे या घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहन दे।
क्या भारत को अब रेयर अर्थ मेटल्स के लिए आत्मनिर्भर बनना चाहिए? नीचे कमेंट करें और अपनी राय साझा करें।
📝 निष्कर्ष
भारत को रेयर अर्थ संकट को एक चेतावनी की तरह लेना होगा। अमेरिका और चीन ने अपनी रणनीति तय कर ली है, अब भारत को भी चाहिए कि वह वैश्विक तकनीकी दौड़ में पिछड़ने से पहले तेज़ कदम उठाए।
📜 डिस्क्लेमर
यह लेख सार्वजनिक मीडिया रिपोर्ट्स और विश्लेषणों पर आधारित है। इसमें प्रस्तुत जानकारी केवल सूचनात्मक है और किसी प्रकार की आधिकारिक पुष्टि नहीं मानी जानी चाहिए।
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