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🌀 उद्धव और राज ठाकरे साथ आ सकते हैं? महाराष्ट्र की सियासत में हलचल तेज़!

📍 मुंबई | 7 जून 2025
महाराष्ट्र की राजनीति में एक नई हलचल देखी जा रही है। कभी एक-दूसरे के खिलाफ सियासी मोर्चा खोलने वाले उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे अब एक साथ आते दिख रहे हैं। शिवसेना (यूबीटी) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के बीच संभावित गठबंधन की चर्चाएं तेज हो गई हैं।


🗣️ उद्धव ठाकरे बोले - "जो जनता के दिल में है, वही होगा"

हाल ही में शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने एक भावुक बयान देते हुए कहा,

“महाराष्ट्र के लोगों के दिल में जो है, वही होगा। हमारे शिवसैनिकों के दिल में कोई भ्रम नहीं है।”

इस बयान ने संकेत दे दिया है कि अगर जनभावना राज और उद्धव को साथ देखना चाहती है, तो वे कदम पीछे नहीं हटाएंगे।


🧩 सुप्रिया सुले का बड़ा बयान - "जितने साथी आएं, उतनी मजबूत होगी अघाड़ी"

एनसीपी (शरद पवार गुट) की सांसद सुप्रिया सुले ने कहा कि यदि राज ठाकरे जैसे नेता अघाड़ी (महाविकास अघाड़ी) में शामिल होते हैं, तो यह गठबंधन और अधिक मजबूत होगा।

“मुझे व्यक्तिगत रूप से कोई आपत्ति नहीं। हमें जितने साथी मिलेंगे, उतना ही लोकतंत्र को बल मिलेगा।”

🛤️ क्या फिर से जुड़ेगी ठाकरे परिवार की टूटी डोर?

यह पहली बार नहीं है जब उद्धव और राज ठाकरे के एक साथ आने की अटकलें तेज़ हुई हैं।
2006 में जब राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग होकर मनसे बनाई थी, तब से दोनों गुटों के बीच दूरी रही। लेकिन बदले हुए राजनीतिक परिदृश्य, बीजेपी की मजबूती, और मराठी अस्मिता की राजनीति के चलते अब दोनों भाइयों का साथ आना समय की मांग बन सकता है।


🔍 क्यों है यह गठबंधन महत्वपूर्ण?

  • 2024 लोकसभा चुनावों में महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी (एमवीए) की सीटें घटीं।
  • बीजेपी-शिंदे गठबंधन का दबदबा बढ़ा है।
  • राज ठाकरे के पास मराठी युवा वोट बैंक है, जबकि उद्धव ठाकरे के पास परंपरागत शिवसैनिक।

इसलिए दोनों के साथ आने से एक मजबूत मराठी अस्मिता मोर्चा खड़ा हो सकता है जो बीजेपी को टक्कर दे।


🔮 आगे क्या?

अगर यह गठबंधन वास्तविकता में बदलता है, तो 2025 के अंत तक होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में राजनीतिक समीकरण पूरी तरह बदल सकते हैं।
राज ठाकरे की बागी छवि और उद्धव ठाकरे की संवैधानिक लड़ाई एक साथ आकर नया नैरेटिव गढ़ सकती है।


📌 निष्कर्ष:

महाराष्ट्र की राजनीति में यह गठबंधन सिर्फ दो भाइयों का मिलन नहीं होगा, बल्कि एक सांस्कृतिक और राजनीतिक ध्रुवीकरण की शुरुआत भी हो सकती है। सुप्रिया सुले का बयान महज एक राय नहीं, बल्कि अघाड़ी के दरवाजे खुले होने का संकेत है। अब देखना यह होगा कि क्या पुराने घाव भरकर भविष्य की सियासत के लिए नई शुरुआत होती है?


#NowOrNeverNews | राजनीति | महाराष्ट्र | ठाकरे भाई | सुप्रिया सुले | महाविकास अघाड़ी

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